Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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209/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार सेवा, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण(परित्याग) धर्म-ध्यान,शुक्ल-ध्यान न करे। - व्रत हमारे लिए सुरक्षा कवच हैं, जो हमारे संस्कारों, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह, संयम (ब्रह्मचर्य), मार्दव (अभिमान रहित होना), आर्जव (निष्कपट होना, सरल बनना), शौच (लोभ मल से दूर रहना), ऊपर वर्णित तप आदि को सम्बल देते हैं। इन परीक्षाओं में खरे उतरने पर अनुपम दैविक-लाभ मिलता है। मद्य, मांस, परस्त्री त्याग, आश्रम के संयमित जीवन, कष्ट, सहिष्णुता एवं त्याग के व्रतों के फल स्वरूप गांधी भारत के राजनैतिक अहिंसात्मक आन्दोलन के अग्रणी बने। सत्याग्रह का विकास कर भारत के ही नहीं समस्त मानव जाति के सहस्त्राब्दी पुरूष (Man of Millenium) बने। यहाँ तक कि उनकी आत्म-कथा-'मेरे सत्य के प्रयोग', भावी पीढ़ियों के लिए सुसंस्कार निर्माण की एक जीवन्त पुस्तक, अनुपम देन बन गई। उनके द्वारा संस्थाओं के सुसंचालन के लिए विधिवत् लेखा-जोखा रखना एवं अपने अच्छे स्वास्थ्य के रहस्य का श्रेय एवं बचपन में बचत हेतु खर्च का पूरा हिसाब रखने एवं पैदल 8-10 किलोमीटर प्रतिदिन घूमना बताया
- प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने धरातल पर देश, काल, क्षेत्र, स्वभाव से प्रभावित होता है। इनमें व्यक्तित्व विकास के लिए बाह्य परिस्थितियों का अनुकूल एवं प्रतिकूल होने के साथ साथ आत्म भावना अधिक प्रेरक बनती है। मेरे बाल्यकाल से मेरी सरल, करूणामयी देवी माँ से, बुद्धिमान मामाजी से, साहसी बड़े चाचाजी से, मैं इन संस्कारों से प्रभावित हुआ हूँ। बचपन में ही मुख्याध्यापकजी ने 'सदा सत्य बोलने का व्रत' दिया तथा सेवाकाल में आचार्य श्री तुलसी नें, "किसी से सौदा बाजी न करने का व्रत" दिया। इन दोनों को मैंने लगभग अच्छी तरह पालन किया। मेरे पिताजी कुछ वहमी पति एवं काफी निष्क्रिय प्रकृति के थे। उनसे विपरीत बनने हेतु मैं अधिक उद्यमी, विद्या प्रेमी एवं एक