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जैन दर्शन एवं हमारी जीवन पद्धति
(प्रयोग आधारित)
अंग्रेजी में एक प्रचलित कहावत है, “Proof of Pudding is in eating". धर्म क्या है, जो हमारे व्यवहार में आचरण में आवे, यह केवल शास्त्रों में न रहे। धर्म वह जो धारण किया जावे। इसलिए धर्म जो सही माने में जीवन का मार्गदर्शक हो। हम उसे केवल श्रद्धा से नहीं वरन् सही माने में भी समझें तथा जिस पर मनः पूर्वक व्यवहार करें। वही हमारे लिए कल्याणकारी धर्म होगा। ऐसा धर्म ही हमें पग-पग पर कर्मों के सतत् बन्धन से शनैःशनैः मुक्ति की ओर बढायेगा। मोक्ष चरम लक्ष्य है, उसके पहले कदम-कदम पर उस पथ पर बढ़ना होगा, तब वह रास्ता आसान होगा। विज्ञान में भी निष्कर्ष के पहले "Observation, experimentation" होता है फिर “Conclusion” होता है; इसलिए तत्वार्थ सूत्र जो जैन दर्शन का सभी सम्प्रदायों के लिए एकमात्र लगभग दो हजार वर्ष पुराना सर्वमान्य प्रामाणिक ग्रंथ है, उसके महान लेखक आचार्य श्री उमास्वातिजी ने प्रथम दोहे में ही लिखा है “सम्यग् दर्शन, ज्ञान, चारित्राणि मोक्ष मार्ग है। जैन दर्शन के तत्वों में जैसे सम्यग-दर्शन अर्थात् अनेकांत, सत्य, आत्मतत्व, आत्मा को कर्मों के बंधनों से छुड़ाने के उपाय- जैसे संवर यानि अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह ब्रह्मचर्य हैं उनसे एवं निर्जरा यानी तपादि, दस धर्म क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि अपना कर, उन की विस्तार से जानकारी पाकर उन्हें स्वेच्छा से जीवन में अधिकाधिक अपनाकर, सुखी, संतुष्ट, आनंदित बनें, यही मुक्तिमार्ग है।