Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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शाकाहार-जगत का त्राण
उनके पुको अपनाने की तो उन्हयाग रहे.
आधुनिकता की आँधी में कई बार नादानी में हम शाश्वत मूल्यों की होली कर बैठते है। रूक्मिणी देवी अरण्डेल; नें, जो पशु कल्याण आन्दोलन की सिरमौर थीं, पचपन वर्ष पूर्व हमारे कॉलेज के उद्बोधन में बताया कि, "पश्चिम जगत में जहाँ हमारे सांस्कृतिक मूल्य जैसे "शाकाहार" अपनाने की अभिलाषा एवं होड़ लगी हैं, वहीं हमारे तथाकथित आधुनिक भ्रमित प्रगतिशील लोग उनके पुराने विचारों के चिथड़े जैसे मांसाहार, सामिष-भोजन एवं मद्यपान को अपनाने में गर्व मानते हैं।" मैंने स्वयं एक केनेडियन-मंत्री से बात की तो उन्होंने बताया कि, "हम लोग सामिष भोजन, मद्यपान, रात्रि भोजन त्याग रहे हैं; कोई बुढ्ढे ठाडे अपनी पुरानी आदत से बाज नहीं आ सकते, वे लाचार हैं, लेकिन नई पीढी इसके विरूद्ध हैं।" इसलिए पाश्चात्य देश के अच्छे विचारक बर्नार्डशा, एच.जी.वेल्स, आल्डस-हक्सले, आईस्टीन, लीओ, टोल्सटाय, चार्ल्स डार्विन, वाल्टर-न्यूटण आदि न केवल शाकाहारी थे वरन् वे इसके प्रबल समर्थक थे।
__ भारत के लगभग अधिकांशों धर्मों में जीव दया, शाकाहार, का इस कद्र समर्थन किया है कि भारत की सांस्कृतिक परम्परा में 'अंहिसा परमो धर्म', न केवल आगमों में वरन् महाभारत एवं उपनिषदों में भी श्रेष्ठ माना गया है तथा आज के विश्व में देशों को स्वाधीनता दिलाने में गाँधीजी का अहिंसात्मक आन्दोलन का शस्त्र, युग-युग में उत्तम समझा गया है, इसलिए विश्व में उन्हें सहस्राब्दी पुरूष माना गया है। मनुष्य की सुकोमल भावनां-सहानुभूति, दया, करूणा, प्रेम भ्रातृभाव का पहला द्योतक