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शाकाहार-जगत का त्राण/200
गई है। प्राण वायु की हो रही विलुप्तता के बारे में भी अतः शीघ्री उपाय "मुख्यतः प्रमुख-शैतान मांसाहार", के विरूद्ध आवश्यक है।
ध्यान रहे की इन वर्षावनों की कटाई से लाखों वनस्पत्तियों की प्रजातियाँ विनिष्ट हो जाती हैं। जिनमें कई प्रमुख औषधियाँ एवं अन्य आर्थिक विकास की आधार होती हैं। यही नहीं उन पर निर्भर पशु पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ जो वनसम्पदा एवं पर्यावरण के महत्वपूर्ण अंग हैं असंतुलित हो जाते हैं एवं उपरोक्त सब कारण मिलकर हमारे अस्तित्व के संकट बन जाते हैं। ___मांसाहार अन्य दृष्टि से भी मनुष्य के जीवन के लिए घातक है-शारीरिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक, नैतिक रूप से। युनेस्को के अध्ययन के अनुसार लगभग 160 बीमारियों का घर मांसाहार है। केवल थोड़े से दूध, दही एवं वनस्पतियों से भी मांस से मिलने वाले बायोलोजिकल प्रोटीन की कमी-पूर्ति हो जाती है। फाईबर्स, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट का माँस में अभाव है जो एक संतुलित भोजन के लिए जरूरी है। अतः यह उचित भोजन कतैई नहीं है।
इन भौतिक कारणों के अलावा मनुष्य होने के नाते हम संवेदना पूर्वक सोचे कि जैसे हमें जीने का अधिकर है हर जीव को वह उतना ही है। सबको अपनी जान प्यारी है। सामान्यतः मरना कोई नहीं चाहता है। जो जान हम दे नहीं सकते उसे छीनने का हमें अधिकार नहीं। विश्व स्रष्टा ने सबको एक दूसरे के पूरक के रूप में बनाया है जैसे हमने उपरोक्त लेख में पाया है। - इसलिए धर्म शास्त्रों में सत्य ही कहा है, "आत्मवत् सर्वभूतेष"| सबके सुख दुख को अपनी तरह समझें। डॉक्टर हर दयाल ने ठीक ही कहा है- "जो जीव जितना विकसित है उसकी हत्या करने पर मन में उतना ही अधिक आघात होता है।" तत्वार्थ सूत्र में कहा है "मुख्यतः पंचेन्द्रिय संज्ञी जीव मनयुक्त होते हैं, वे सोच विचार कर सकते हैं, दुखी सुखी होते हैं, संवेदनशील हैं। अतः प्राणियों की हिंसा से सिवाय अनिष्ट, दुःख एवं सर्वनाश के कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है।'