Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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जैन साहित्य का विश्व पर प्रभाव
संत कबीर के सीधे साधे दोहों के गूढ तत्व-ज्ञान पर आधारित गीतांजलि पर गुरुवर श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर को 'नोबल विश्व पुरस्कार' मिला। गीता जो उपनिषद युग की देन है उसका समस्त विश्व पर प्रभाव है। जैन दर्शन भी कर्मकाण्ड पुरोहितवाद से परे शुद्ध आत्म धर्म है। वैदिक धर्म के भी पूर्व से भारत में 'श्रमण धर्म की परम्परा चल रही थी जिसे उपनिषदों में एवं प्रभु महावीर की वाणी में पुनरुत्थान मिला। ऑल्डस हक्सले ने इसे पेरिनियल फिलोसोफी यानी सतत् धर्म दर्शन कहा है। मेक्समूलर इससे अत्यन्त प्रभावित थे। उन्होंने पूर्व का पवित्र दर्शन नामक ग्रंथ इस पर लिखा है।
सर्वज्ञ वीतराग एवं केवल ज्ञानियों द्वारा जैन धर्म दर्शन का प्रतिपादन किया गया है। प्रभु महावीर के गणधरों ने श्रुति एवं स्मृति की परम्परा पर आगम् जैन दर्शन साहित्य की विपुल रचना की। आचार्य सुधर्मा ने महावीर के समय में ही आचारंग की रचना की। समस्त आगम महावीर के लगभग 980 वर्ष पश्चात् देवर्द्धि क्षमा श्रमण के नेतृत्व में संकलित रचयित लिपिबद्ध किये गये। बाद के महान आचार्यों ने भी इन पर महत्वपूर्ण भास्य, चूर्णियाँ, टीकाएँ लिखीं, उनका संक्षिप्त दिग्दर्शन इस छोटे लेख में गागर में सागर के समान प्रयास होगा।
आगम का अर्थ है- 'जानना '- जो आत्मा का स्वभाव है। मूल 11 आगम उपलब्ध हैं। बारहवां आगम 'दृष्टिवाद' लुप्त है।