Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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183/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
चक्र है, उन पर उत्तम शुभ-भाव, अध्यवसाय का ध्यान करें एवं उन भावों को भी लक्षित करें।
विनोबा भावे ने गीता प्रवचन में लिखा है , शिवलिंग पर तांबे के पात्र से बूंद-बूंद गिरती है। उसका तात्पर्य है हमारे जीवन में भी एक-एक शुद्ध संस्कार आवें और हम निर्मल बनें। कोई बुराई न आवे, जागरूक रहें। ध्यान मुद्रा में इन चक्रों पर उच्च विचारों, भावों से हमारा मन संस्कारित हो। जैसे सर्वप्रथम हम मेरूदण्ड सीधाकर पद्मासन या सुखासन पालथी लगाकर बैठ जावें अपनी गुदा को संकुचित कर भीतर खींचते हुए ध्यान करें, मैं उर्ध्वयात्रा शुद्ध उच्च विचारों में वृद्धि कर रहा हूँ। मेरी ऐसी यात्रा शुरू हुई है। मैं सत्य, संयम, अहिंसा की ओर बढ़ रहा हूँ । यह हमारा शक्ति केन्द्र (यहा हमारे गोनाड एवं Testicles हैं)। इन भावों से कुछ मिनटों बाद ध्यान को आगे बढ़ाते हुए हम अपनी किडनी के ऊपर दो एड्रिनल की ग्रंथियों पर ध्यान केन्द्रित करावें, वे हमें भय की अवस्था में निर्भय बनने का संकेत देती हैं। निर्भय बनकर हम पाप रहित बनें। अभय की जीवन में साधना करें। पाप रहित सत्यवान आत्मा, अभय होती है। यह हमारा तेजस-केन्द्र है। फिर हम थाईमस या आस पास हृदय कमल पर ध्यान करें जो शुद्ध हो, निर्मल हो, करूणामय हो, संवेदनशील निश्छल हो।
ध्यान को आगे बढ़ाते हुए गर्दन एवं आस-पास थाइराइड एवं पैराथाराइड ग्रंथियां जो विशुद्धि केन्द्र हैं , उन पर ध्यान करें, मूलतः कि मैं स्पष्ट कथन करूँ, संदेहरहित वचन बोलू, मीठा बोलूं, किसी को मर्माघात न करूँ, क्रोध न करूँ, अपशब्द न कहूँ। फिर ध्यान को आगे बढ़ाते ललाट पर दर्शन केन्द्र यानी सम्यग-दर्शन के भावों पर ध्यान करूँ। मेरा जो है वही सत्य नहीं, वरन् सत्य मेरा है। सत्य के अनेक रूप हैं। अक्सर विरोधी दिखने वाले पहलू या धर्म, सभी सत्य के अंग हैं, पूरक हैं। एकान्त मत नहीं उसके अनेकांत रूप हैं। स्त्री, पुरूष, दिन, रात प्रारम्भ एवं अंत, अंहिसा, अभय, दृढ़ता, मृदुता, धैर्य, श्रम, विश्राम, गति, स्थिति