Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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जैन साहित्य का विश्व पर प्रभाव/188
ईसा की लगभग दूसरी सदी में आचार्य कुंदकुंद द्वारा महान रचना समयसार की गई। यह आत्मा पर लगभग अद्वितीय ग्रंथ है। पंडित हक्मचंद भारिल ने अपनी अमेरीका यात्रा के संस्मरण में लिखा है कि अमेरिका में "समयासार' जानने में अत्यधिक रूचि है। उस पर बहुत प्रश्न किये जाते हैं।
तत्वार्थ सूत्र - जैनों की बाईबिल समझी जाती हैं, जो उमास्वाति की महान रचना है।
आचार्य सिद्ध सेन द्वारा स्याद्वाद- अनेकांत वाद पर सन्मति तर्क लिखा है। समंत भद्र सूरी ने भी 'आप्त-मीमांसा' लिखी है तथा आचार्य हरिभद्र सूरी ने भी योग दृश्टि समुच्चय लिखा है। ये सब अनेकांतवाद को सुस्पष्ट करते है। योग, प्रेक्षाध्यान, विपश्यना भी लोकप्रिय हो रहे हैं। विश्व के जैन दर्शन के अधिकारी लेखकों ने अहिंसा के समान ही स्याद्वाद का प्रभाव माना है। ___ डॉक्टर हर्मन जेकोबी जो जैन धर्म -दिवाकर पदवी प्राप्त हैं, उन्होंने स्याद्वाद के लिए कहा है "स्याद्वाद से समस्त सत्य विचारों का द्वार खुल जाता है।" डॉक्टर डी.एस. कोठारी जी ने स्याद्वाद को "समंतभद्र सर्वोदय तीर्थ" कहा है। डॉक्टर थामस इंग्लैण्ड वासी ने कहा है, "न्याय शास्त्र में जैन न्याय दर्शन अति उच्च है
और स्याद्वाद का स्थान अति गंभीर है।" वस्तुओं की भिन्न परिस्थितियों पर यह बहुत सुन्दर प्रकाश डालता है, जैसे महावीर से गौतम ने पूछा - "क्या जीव नित्य है"? महावीर ने कहा, "जीव नित्य भी है, अनित्य भी। कर्म रूप से मुक्त जीव नित्य है अन्यथा अनित्य"।
आचार्य हेमचन्द्र जिन्होंने लाखों पद जैन साहित्य हेतु लिखेउन्होंने अनन्त धर्मात्मक संत कहा है। अतः एकान्त आस्ति या एकान्त नास्ति उचित नहीं।