Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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कर्मबन्धन के कारण एवं क्षय तत्वार्थ के आलोक में/174
MEANING:- Without practising vows to ward of violence, untruth, stealing, possessions, birth in all the four kinds of lives, including infernals may occur.
सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जराबालतपांसि दैवस्य
(6:20, तत्वार्थ सूत्र) अर्थः- देव गति के आस्रव के हेतु हैं- सराग संयम, संयम-असंयम के साथ साथ, अकामनिर्जरा पराधीनताकष्टसहन एवं बालतप, अज्ञानतप जिसका उद्देश्य आत्मशुद्धि नहीं वरन् अन्य भौतिक लाभ हो।
sarāg samyama samyamā samyamā kām nirarāh bāltapāmsi daivasya
(6.20, Tattavarth Sutra) MEANING:- Self restraint with attachment, limited restraint (lay vows), involuntary shedding karmas by forced vows in indigent circumstances and austerities not inspired by purging of soul but for other wordly objects, are causes of gaining heavenly life.
योगवक्रताविसंवादनंचशुभस्य नाम्नः
(6:21 तत्वार्थ सूत्र) अर्थः- योगों की कुटिलता और विसंवादन . अन्यथा प्रवृत्ति एवं ऐसे कार्य-अशुभ नाम कर्म के आस्रव के हेतु हैं। लेकिन इससे भिन्न यानी योगों की सरलता एवं शुभ प्रवृत्तिशुभनाम, कर्म के हेतु हैं। अशुभनाम कर्म के कारणों में निंदा में रस लेना, अन्य को नीच दिखाना, अधीरता, खोटे तौल-नाप में