Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 182
________________ कर्मबन्धन के कारण एवं क्षय तत्वार्थ के आलोक में/172 अर्थ:- बहुत आरम्भ एवं बहुत परिग्रह नरक आयु का आस्रव है। बहुत आरम्भ का अर्थ तीव्र या घोर कषाय,क्रोध, मान, माया, लोभ जनित हिंसा, दम्भ, कपट एवं परिग्रह की कृष्ण लेश्या आदि से है। मृत्यु के समय में भी लगातार हिंसा में भाग, अन्य लोगों का धन हड़पने की क्रिया, संसारी चीजों से अत्यधिक लगाव से, नरक गति मिलती है। अत्यधिक परिग्रह, तृष्णा का यह परिणाम है। Brahiārambha parigrahatva ca nārkāsyāyusah (6.16, Tattavarth Sutra) MEANING:- Virulet aggressive indulgence in violence, pride, deceit, and greed as to deprive people of their possessions to accumulate one's own riches ,with much attachment and black 'aura' due to such thoughts even at time of death, result in birth in the infernal region. माया तैर्यग्योनस्य (6:17, तत्वार्थ सूत्र) अर्थः- माया यानी छल, कपटपूर्ण आचरण से तिर्यंच आयु का आस्रव बनता है। यह आचरण शब्दों एवं क्रिया से हो सकता है। झूठा उपदेश, अनैतिकता, धोखाधड़ी, नील-कापोत-लेश्या या मृत्यु के समय ऐसे भाव, इसके कारण होते हैं। māyā tairgyonsaya (6.17, Tattavarth Sutra) MEANING :- The deceitful conduct result in birth in animal kind. Such conduct may be through words and or deeds. Preaching false hood, and or practising immorality, forgery or possessing such fiendish thoughts

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