Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 171
________________ 161/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार MEANING :- Violence, stealing, incontinence, harsh words, backbiting, animosity envy are examples of evil actions of body, speech and mind. सकषायाकषाययोः सामपरायिकेर्यापथयोः ___(6:5, तत्वार्थ सूत्र) - अर्थः-- उपर्युक्त तीनों प्रकार का योग सकषाय और अकषाय दो प्रकार के जीवों को होता है। सकषाय जीवों के सांपरायिक आस्रव होता है जिसकी स्थिति अनियत हैं, दीर्घ अवधि वाली है एवं अकषाय जीवों के ईर्यापथ आस्रव होता है जिसकी स्थिति एक समय की ही होती हैं- यानि अल्पत्म है। कर्मबंध चार प्रकार का है, प्रकृति, प्रदेश, स्थिति एवं अनुभाग बंध । Sakasāyākasāyayoh sāmpārayikerya pathyoh (6.5 , Tattavarth Sutra) . MEANING :- All three types of activities may be performed with passions which would cause karmic bondage that in turn causes soul's long term wordly wandering and those activities which are done without passion would casue only one-time unit bondage called "Irayya Path Karma", binding without passions does not involve Karma binding of duration, except for only one unit of time. अव्रतकषायेन्द्रियक्रिया:पचचतु पंच पंच विंशतिसंख्याः पूर्वस्य भेदाः (66,तत्वार्थ सूत्र) अर्थः- अव्रत (5), कषाय (4), इन्द्रियाँ (5) और सम्यक्त्व आदि (25) क्रियाएँ-ये साम्परायिक आस्रव के 39 भेद हैं। हिंसा,

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