Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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। तत्वार्थ सूत्र की विषयवस्तु एवं संदेश/142
शरीर वाडमन प्राणपाना : पुदग्लानां
5:19 सुखदुख जीवति मरणोपग्राहश्च
5:20 परस्परोपग्रहो जीवानाम्
5:21. योग उपयोग जीवेषु
5:44 अर्पितान अर्पिता सिद्धे
5:31 संसारी जीव में शरीर, वाणी, मन, सुख-दुख, जीवन-मरण के साथ उपयोग समता, रमता, उर्ध्वता, ज्ञायकता, चेतन्यता सुखाभास भी है।
पुदगल में भी विघटन या निर्माण प्रक्रिया उत्पाद, व्यय, ध्रुव संयुक्त रूप से प्रभावी हैं। वही सत् कहा है। अनेकांत पक्ष को उजागर करते हुए 5:31 में कहा है। - जो व्यक्त किया गया है और जो अव्यक्त रह गया है वह मिलकर सत्य है। क्योंकि वस्तु के अनेक-अनेक गुण धर्म हैं। जिसे एक साथ नहीं समझा या समझाया जा सकता है उसमें धैर्य, बौद्धिक एवं आत्मिक विकास मूलतः अहिंसक विचार धारा की परमावश्यकता है।
छठे एवं आठवे अध्याय में कर्म का फल एवं कर्मों का बंधन जो विभिन्न प्रकार के हैं, कर्म बंधन के कारण , उनकी अवधि एवं फल के प्रभाव का वर्णन है। छठे अध्याय में मूल रूप से किस कर्म का क्या फल है, उसका दिग्दर्शन किया गया है, जैसे ज्ञानवरणीय , दर्शनावरणीय कर्म के कारण एवं तदनुसार फल है। दोनों धाति कर्म हैं जो हमें सही दर्शन से एवं ज्ञान से अपने कार्य अनुरूप. से वंचित करते हैं। इसी प्रकार साता वेदनीय व आसातावेदनीय के कारण भी दुःख, शोक, ताप, क्रंदन, विलाप ताड़न, वर्जन, आघात आदि होते है। इसके विपरीत साता वेदनीय