Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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नवकार महामंत्र/76
सव्वनूणंसव्वदरिसीणं सिव, मयल, मरू अमणंत मक्खयमव्वाबाह्म मपुणराविति, सिद्धिगई नाम धेयं ठाणं संपत्ताणं
नमो जिणाणां जिअभयाणं सर्वज्ञ एवं समदर्शी हैं, कल्याणकारी, अचल, निरोगी, अनन्त, अक्षय, पीडारहित, पुनरागमन रहित, सिद्ध गति प्राप्त, अक्षय शिला पर स्थित, समस्त भावों को जीतने वाले, ऐसे जिनेश्वर को वंदन करता हूँ। 15. नमो आयरियाणं।
पंचाचारसमग्गा पंचिदिय दंतिदपपणिद्धलणा धीरा गुणगंभीरा आयरिया एरिसा होंति
-(नि.सा. 73) 'पंचिदिया' सूत्र में आचार्यों के 36 गुणों का वर्णन है। उसका सारांश उपरोक्त दोहे में है। संक्षेप में जो पाँच आचारज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार एवं वीर्याचार का पालन करते हैं, पंचेन्द्रिय रूपी मदोन्मत्त हाथी के अभिमान पर अंकुश रखते हैं, इन्द्रिय संयम पालते हैं। पंच महाव्रतों- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपिरग्रह एवं ब्रह्मचर्य का हर संभव पालन करते हैं। पाँचों समितियाँ-ईर्या (चलने-फिरने) समिति, भाषा-समिति, एषणासमिति, आदान-निक्षेप समिति, व्युत्सर्ग आदि जीवन की सामान्य क्रियाएँ – चलना-फिरना, बोलना, इच्छाएँ करना, चीजें उठाना, रखना, दूषित वस्तुएँ फैंकना, प्रवाहित करना आदि में पूरा विवेक पालते हुए पापकर्म से बचने के प्रति जागरूक रहने से तात्पर्य है। इसी प्रकार तीन-गुप्तियों का और संवर धारण किये हुए हैं , यानी मन, वचन, काया, तीनों रूप से पाप कर्मों के आश्रव द्वार को रोके हुए हैं। इस प्रकार अहिंसा, संयम और तप से कर्मफलों से मुक्त रहते हैं। क्षमादि दस धर्म पालते हैं। आत्मा के क्षेत्र में सतत् प्रगति हेतु शरीर को साधे हुए हैं। ऐसे धीर, गुणगम्भीर आचार्य होते हैं। इनमें उपरोक्त छत्तीस गुण होते हैं।