Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
View full book text
________________
अनेकान्त एवं स्याद्वाद
.
अनका
जैन तीर्थकरों ने अनेकान्त एवं स्याद्वाद का उपदेश दिया है जो 'अहिंसा परोमोधर्म' एवं 'सत्य ही खलु धर्म', सिद्धान्त पर, आधारित है। सकलार्हत वंदना में अतः कहा गया है :
अनेकान्तमताम्बोधि समुल्लासनचन्द्रमाः।
दद्यादमन्दमानन्दं, भगवान भिनन्दनः।। जो अनेकान्त रूपी ज्ञान समुद्र को उल्लासित करने में चन्द्रमा के समान है, वे भगवान अभिनन्दन स्वामी, हमें अनेकान्त ज्ञान का अतीव आनन्द प्रदान करें। इसी क्रम में स्याद्वाद को समझाते हुए कहा गया है कि
सत्त्वानां परमानन्द.... कन्दोद् भेदन वाम्बुदः। स्याद्वाद मृतनिःसयन्दी, शीतलः पातु; वो जिनः।।।
भव्य प्राणियों में परम आनन्द रूपी अंकुर पैदा करने में जैसे नए मेघ से वर्षा होने पर नए अंकुर आते हैं , उसी तरह स्याद्वाद रूपी वर्षा से शीतलनाथ प्रभु हमें शीतलता देवें, हमारी रक्षा करें।
जैन दर्शन में उसे ही ज्ञान माना है
जेण तच्चविबुज्झज्ज जेण चित्त निरूज्इदि।
जेणअत्ता विसुज्झेज्ज तण्णाणं जिनसासणं।। जिससे तत्त्वों का सही ज्ञान हो, चित्त का नियंत्रण हो और आत्मा विशुद्ध हो।