Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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नवकार महामंत्र / 74
बढ़े, उनका रक्त माँ के दूध की तरह धवल हो । श्वासोश्वास सुगंधित हो, आकाश में इन्द्र ध्वजा उनके साथ हो अशोक वृक्ष साथ हो, पुष्पवृष्टि हो, आभामण्डल हो, उत्तम मणियों युक्त सिंहासन हो, त्रय छत्र और चामर हो, दिव्य ध्वनि हो, ऋतुएँ अनुकूल हों, सुगंधित वर्षा हो, अनुकूल जलवायु हो, उन्हें ज्ञान विषय हो, तीनों लोक के सभी पदार्थों के स्वभाव तक जानते हों, उनकी वाणी मधुर, सत्यमय, स्पष्ट, सुग्राह्य, लोक भाषा में हो, वैर भाव भूल कर सभी वर्ग के प्राणी उनका श्रवण करें, प्रतिवादी स्वयं निरूत्तर हो जायें । पूजातिशय से देव देवेन्द्र शरणागत हों, अतिवृष्टि, अनावृष्टि एवं दुष्काल न हों। इनके कुछ अतिशय जन्म से, कुछ धातीकर्म क्षय से एवं कुछ देव प्रदत्त हैं व कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को अथवा मुनियों को भी किन्हीं समय पर एसे अनुभव होते हैं कि कई कठिन परिस्थितियाँ स्वतः आश्चर्यजनक ढंग से अनुकूल हो जाती हैं। गांधी का ऐलान सारे भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन के समय निर्विरोध आज्ञानुसरण होता था । उनके शब्दों मे चमत्कार था। अतः तीर्थंकर प्रभु को अतिशय प्राप्त हो यह परम सत्यमय है ।
13. इन पांचों पदों में से अरिहंतों ने सबसे पहले सम्पूर्ण सत्य का साक्षात्कार कर मिथ्यात्व मोहनीय रूपी घोर तम का उच्छेदन किया तथा जगत को सत्य के सूर्य केवली बनके बोध दिया। इसलिए सर्वप्रथम अरिहंतों को नमन किया गया
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है । निश्चय ही इसकी साधना सर्व मंगलों में सर्वोपरि मंगल है । उपसर्गों का हरण करने वाला है । समभाव में स्थिर करने वाला है। उन पर कर्मों के झंझावत प्रभाव नहीं डाल सकते। पुराने कर्म क्षय होते हैं, नये कर्म अल्प अल्पतर बंधते हैं, भवसागर की यात्रा कम होती जाती है। मंत्र सिद्धि के लिए प्रत्येक अक्षर का सही उच्चारण अनिवार्य है।