Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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नवकार महामंत्र/80
उपासकदशांग- विशिष्ट दस श्रावकों के नगर, उद्यान,
समवशरण, उपधानतप, शीलव्रत, विरमण व्रत, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास, उपसर्गों, संलेखना, अनशन, पादलिप्त आकाश गमन, देवलोकगमन, बोधि समयक्त्व का
वर्णन है। अन्तक्रतदशांग - जन्म मरण की परम्परा का अन्त करने
वाले साधुओं का वर्णन है। तैंतीस महान
साधुओं का वर्णन है। कर्मविपाक- शुभाशुभ कर्मों के फल का रोचक
कथानक रूप मे वर्णन है, जो मर्मस्पर्शी
अनुत्त्रोपतिकदशांग- सामान्य जैन द्वारा भी उक्त आगम
पठनीय है। प्रश्नव्याकरण- इसमें आश्रव एवं संवर का विस्तार से
वर्णन है जो कर्म की जड़ है। भवप्रपंच
निवारण में सहयाक है। दृष्टिवाद- जो लुप्त है।
उपांग में नंदी सूत्र मे 24 तीर्थंकरों का तथा भगवान महावीर के 11 गणधरों का वर्णन है। बृहत कल्पसूत्र में आत्मरमण तथा व्रतों में दोष पर प्रायश्चित का विधान है। व्यवहार सूत्र भद्रबाहु द्वारा प्रणीत है। स्वाध्याय पर जोर है। आवश्यक सूत्र जैन साधना का प्राण है। जीव शुद्धि कर आतोन्नति हेतु औषध है। श्रावक के आवश्यक कर्तव्यों में सामयिक, चतुर्विशस्तवन, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग एवं प्रत्याख्यान का वर्णन है। उपाध्याय स्वयं इन अंग-उपांग आगमों का अध्ययन करते हैं, उसको जीवन का आदर्श बनाते हैं एवं अन्य को इस हेतु प्रेरित करते हैं।