Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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सम्यक् दर्शन/90
है। आचार्य रजनीश ने जिनसूत्र भाग दो में इनका विस्तार से मर्मस्पर्शी वर्णन किया है, जो जैन दर्शन पर मूलतः आधारित है। सम्यग्दृष्टि जीव : 1. निशंक होगा- निर्भय, अभय, शंका, सन्देह से परे। सत्य,
साहस से ओत-प्रोत । अहिंसा कायरों की नहीं वीरों की है। संसार से डर गए वे क्या ख़ाक, सत्य की यात्रा पर निकलेंगे? आपको धन सम्पत्ति जब निरर्थक लगे, सत्य की खोज में, जीवन भी गुमा सको, उसे निशंक कहेगे। सम्पत्ति के नाम पर कुछ ठीकरे, धन सम्पत्ति आदि इकट्ठे कर रखे हैं ,जो मौत या अन्य परिस्थितियाँ तुमसे छीन लेगी। ऐसी दृष्टि मिले की निशंक हो जाओ, धन से भी श्रेष्ठ कोई लोकोपयोग, आत्मसाधना, सत्य की शोध में अब जीवन लगा
सको। 2. निष्काँक्षा- यानी लालच जब तक चीजों में है तब तक
सच पाना, समझना दुष्कर है। आकांक्षा भटकाव है। कोई
और अच्छा व्यवसाय, वृत्ति, दामाद, अच्छी पत्नी की चाह रहेगी। सोचो तुम कहीं भी होते, क्या आकांक्षा रूकती? स्वप्न बनेंगें। सत्य नहीं। मृगतष्णा कभी न बुझेगी। हमें झूठे
चाटुकार दास, बनाएगी, मौलिक सत्य के उपासक नहीं। 3. निर्विचिकित्सा-यानि जुगुप्सा का अभाव। अपने दोषों को
छुपाना तथा दूसरे के गुणों को न बताना-जुगुप्सा है, जो सत्य से परे है। यह सम्यग्दृष्टि तो दूर, सम्यग्दर्शन की भी राह नहीं है,अभिमान का मद है। "तुम अगर क्रोध भी करते हो, तो कहते हो उसके हित के लिए किया। पत्नी ने पति का क्रोध बच्चे पर, बच्चे ने कुत्ते पर (अपने से कमजोर पर) निकाला।" दूसरे के गुणों को देखने, पहिचानने एवं अपने दोष स्वीकार करने से क्रांति घटित होगी। साधु साध्वी के