Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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नवकार महामंत्र/72
की। ऐसे देह, याही के स्नेह, याकि संगतिसों, हो रही हमारी गति कोल्हू के से बैल की।" (समयसार बनारसीदास) . ऐसे शुभ अध्य व्यवसायों से असंख्य उपकारी देव, चौसठ
इन्द्र जो प्रभो की सेवा में तत्पर रहते हैं वे हमारे विघ्न, उपसर्ग, बाधाएं हरन में सहायक हो जाते हैं। हमारे कर्मों की निर्जरा होती है। आत्मा की अनन्त शक्ति शनैः शनैः ध्यान करने से प्रकट होती
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सतरंज खेले राधिका, कुब्जा खेले सारि। याकि निशदिन जीत है, वाकि निशदिन हारि।
सत्यवचन का सदा उर्वारोहण है। आचार्य जयसेन नमस्कार मंत्र के बारे में फरमाते है- अद्वेत नमस्कार होने पर मैं और प्रभु का भेद मिट जाता है , ज्यों-ज्यों निज-स्वरूप प्रकट हो जाता है। ऐसी अभेद साधना अरिहंत दशा में ही होती है। 10. ऐसे अनेक अनुभव युगों से भव्य जीवों को हुए हैं, विघ्न दूर
हुए हैं। शांति मिली है। नमों अरिहंताणां से सभी क्षेत्र मे विचरे वर्तमान अरिहंतों को भी तथा भूतकाल में हुए अरिहंतों के साथ भाव नमन एवं द्रव्य नमन हो जाता है। पूर्व में अवसर्पिणी काल के तीसरे आरे के अन्त में भगवान ऋषभदेव आदि के जीव तथा चौथे आरे में भगवान महावीर का जीव ऐसे चौबीस तीर्थंकर हुए जो वर्तमान में चौबीसी कहलाते हैं। वर्तमान में विचर रहे, महाविदह क्षेत्र में बीस तीर्थंकर हैं , जिनमें श्री श्रीमंदर स्वामी, युगमन्दर स्वामी आदि हैं तथा भविष्य में होने वाले तीर्थंकर के जीव, जिनमें श्रेणिक राजा का जीव, देवकी महारानी, वासुदेव श्री कृष्ण,
सुलसा सती आदि के जीव भी शामिल हैं। 11. तीर्थंकरों के पाँच कल्याणक मनाये जाते है- च्यवन, जन्म,
दीक्षा, केवल्य एवं निर्वाण। प्रभु महावीर के जन्म कल्याणक का छोटा सा प्रसंग दिया जाता है। तीर्थंकर प्रभु के