Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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ऐतिहासिक प्रमाणों से पोरवाल ओसवाल एवं श्रीमालों के एक होने की पुष्टि/28
नाहटा बीकानेर वासी जो हाल में जैन दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान हुए हैं, उन्होने प्राग्वाट इतिहास की प्रस्तावना में स्पष्ट किया है कि, "दोनों उपरोक्त आचार्यों ने मात्र जैन श्रावक बनाये थे, लेकिन स्थान विशेष के कारण पोरवाल, ओसवाल, फलोदिया, रामपुरिया या काम विशेष से वे भण्डारी, कोठारी, मेहता आदि कहलाये। वास्तव में इन तथाकथित जातियों में कोई धार्मिक, समाजिक भेद नहीं है।" अतः इनमें एकता के प्रयास स्तुत्य हैं।
ऐतिहासिक दृष्टि से प्राग्वाट क्षेत्र मेवाड, सिरोही, गोडवाड़, गुजरात, आबू, चन्द्रावती, कुंभलगढ़, माण्डल के समीप पूर नगर आदि रहा है।
पोरवालों में अनेक गोत्र हैं, जिनमें से निम्न कुछ हैं। पद्मावती, काश्यप, पुष्पायन, आग्नेय, वच्छम, लांब, त्राणि, कासम, कासिद, कुडाल, आनन्द, अग्नि, शाह, सिंघवी, सोलंकी, सोरठा, मारवाड़ी, पुरवीर, परमार, कासेन्द्र, नरसिंह, माधव, अंबा, मूथा, संघवी, डोसी, पारख, धारचन्द्र, पण्डिया, नाहर, हिरण आदि। इनमें से कई गोत्र जैसे सोलंकी परमार, नाहर आदि गौत्र ओसवालों में भी हैं।
पोरवालों की कुलदेवी अम्बा माता है। -"जय अम्बेमात, कुलदेवी तू पोरवाल की तू ही अधिष्ठाता। पद्मावत पद्मासनी माँ चक्ररूप धारी जगत की पालनहारी, करती सिंह सवारी। जय अम्बे माता।"
पोरवाल इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों को अनेक पोरवाल महान राजा, महाराजा, दर्शनवेताओं, अद्वितीय वास्तुकारों, वैरागी, महायोद्धा, कवियों आदि ने सुशोभित किया है। समयाभाव से इनमें कुछ विश्व-स्तर के श्लाघनीथ पुरुषों का जो पोरवाल इतिहास के विशिष्ठ जाज्वल्मान रत्न है, उनका ही वर्णन किया जा रहा है।
मानव जाति की श्रेष्ठतम् स्थापत्य एवं शिल्प की अलौकिक देन में से एक हैं दिलवाड़ा (माँऊट आबू) के जैन मंदिर। देश एवं