Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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45/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
सकेगा।" प्रभु यीशु ने भी महावीर की तरह व्यक्तिगत, आमोद प्रमोद का जीवन नहीं जिया, वरन् आत्मोद्धार एवं लोक कल्याण को ही लक्ष्य रखा। महावीर ने साढे बारह वर्ष तक घोर तपस्या कर केवल ज्ञान प्राप्त किया तथा तीस वर्ष तक प्राप्त ज्ञान को जन समुदाय में वितरित किया। प्रभु यीशु भी अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य, अचौर्य एवं ब्रह्मचर्य की राह पर चले जो जैन दर्शन की आधार शिला है।
साधना काल में प्रभु महावीर को विविध कष्ट उठाने पड़े। उन पर ध्यानावस्था में शूल-पाणी में क्या-क्या उपसर्ग नहीं किये? भुजंग होकर लिपटा, कांटों में उन्हें बांध दिया। सिंदूरी-आग की लपटों से जलाया। भंयकर अट्टहास घोष किये। • महाविषधारी द्वारा उन्हें अतिक्रोध से झल्ला कर उन पर वार किये, क्रूर प्रहारों के साथ डसा गया। देवों , असूरों, मालवों द्वारा उन्हें प्रताड़ना दी गयीं। कोड़े बरसाये गये। कुत्ते छोड़े गये। उन्होंने शीत-ताप, क्षुधा, प्यास को समभाव से सहा। दास प्रथा व नारी उत्थान को निमित्त रखते हुए अपने संकल्प अनुसार लगातार पांच माह से अधिक तप के पश्चात् चंदनबाला से बाकूले - रूक्ष - भोजन ग्रहण कर, पारण किया। कदाचित ही कहीं उनके जैसी कठोर साधना, अहिंसा, व्यवहार एवं आदर्श में दृष्टिगोचर होती है। व्यवहार में अनेकांत एवं दर्शन में स्याद्वाद को उन्होंने अपनाया। ___ यदि अंहिसा की अन्य कोई ऐसी अनुपम मिसाल व्यक्तिगत जीवन में है तो प्रभु ईशु में निखरकर सामने आई है। शैतान एवं सर्प द्वारा प्रभु ईशु को भी अनेक कष्ट दिये, उपसर्ग किया। तत्कालीन नेताओं, पदाधिकारी एवं राजा के प्रतिनिधि द्वारा उन्हें कदम-कदम पर यातनाएँ दी गईं। फिर भी उनके मूल उपदेश, अहिंसा, सत्य एवं प्रेम की अनुपम त्रिवेणी थे।
"अपने शत्रुओं से प्रेम करो। जो तुम से घृणा करते हैं उनके साथ भी भलाई करो। जो तुम्हें श्राप देते हैं उनकी प्रसन्नता के लिए प्रार्थना करो। तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारें तो दूसरा