Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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नवकार महामंत्र / 66
तं बहु गुणप्पसायं मुक्खसुहेण परमेण अविसांय । में विसायं कुणउ परिसावि अप्पसायं । । - ( अजित शांति ) 26 गाथा
नासे
अनेक गुणों से युक्त, परम मोक्ष सुख के कारण विषाद रहित दोनों, इस प्रकार सभी जिनेश्वर मेरे विषाद एवं कर्म आश्रव को दूर करने का प्रसाद देवें ।
2. महामंत्र मंगल भावों से भरा हुआ है इसलिए सब मंगलों में श्रेष्ठ, एवं सर्वोपरि मंगल है। अरिहन्त की आराधना का आधार यह है कि उनके सब अमंगल भावसमूल नष्ट हो चुके हैं। निर्मल निजस्वभाव में स्थित हो गये हैं, अत्यन्त प्रभावप्रद हों, जिन्हें सब पदार्थों के स्वभाव अच्छी तरह ज्ञात हैं। उन भगवतों को प्रणाम करता हूँ । अजित शांति स्तवन में इन भावों को इस तरह से वर्णित किया है -
ववगयमंगल भावे ते हं विउलतवनिम्लसहावे । निरूवम महप्पभावे, थोसामि सुदिट्ठसुमावे || - ( अजितं शांति) दोहा-2
इसलिए महामंत्र के लाभ के लिये निश्चित रूप से कहा गया
संव्व पावप्पणासणो ।
यह सभी पापों का समूल नाश करने वाला मंत्र । माँ से बढ़कर जगत के प्राणियों के लिये कौन हितकारी होता है लेकिन जन्म जन्मान्तरो से भटकी हुई अपनी आत्मा रूपी माँ को सुलभ कराने वाला यही महामंत्र है ।
तं संति संतिकरं संतिण्णं सव्वभयां । संतिं थुणामि जिणं, संति विहेउ में ।।
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- ( अजित शांति) दोहा - 12