Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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महावीर के जीवन के मार्मिक प्रसंग
इन्द्र द्वारा ब्राह्मणी देवनन्दा के कुक्षी से भ्रूण हटाकर माता त्रिशला के गर्भ से वर्धमान के जन्म लेने की जानकारी स्वयं महावीर ने गौतम के प्रश्न पर दी क्योंकि जब ब्राह्मण ऋषभदत्त एवं देवनन्दा उनके दर्शनार्थ आये तब देवनन्दा के स्तन से दूध बहने लगा। उसकी चोली खिंचने लगी । शरीर की रोमावली से रोम हर्षातिरेक से खड़े हो गये, जैसे वर्षा के बाद कदम्ब का वृक्ष खिल उठता है । वह एकटक भगवान महावीर को देखने लगी । "ऐसा क्यों हुआ?" इस पर महावीर ने बताया, "यह ब्राह्मण स्त्री देवनन्दा मेरी माँ है, जो मुझे वात्सल्य भाव से देख रही है क्योंकि मेरी प्रथम उत्पत्ति उससे हुई थी।" इसका वर्णन भगवती सूत्र (आगम) में उपरोक्त प्रकार से है ।
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महावीर ने 30 वर्ष की उम्र में संसार त्यागने पर पंचमुष्टि लोच करते हुए व्रत लिया कि "मैं अब से कोई सावद्य कर्म नहीं करूंगा।" प्रथम चौमासा अस्थिग्राम के शूलपाणि-यक्ष- मंदिर में हुआ । यक्ष जो पूर्व भव में बैल था, तथा सेठ की लाभ - लोभवृत्ति के कारण बहती नदी में से शकट (बैलगाड़ी) के अधिक भार को निर्ममता पूर्वक खींचे जाने से सेंध टूटने व वहीं ग्राम में गिर पड़ने का शिकार था, तथा जिसे ग्रामवासियों ने उसके लिये दिया गया जीवतव्य हड़प कर भूखों-प्यासों मरने को बाध्य कर दिया था; अतः उन पर वह दुर्दान्त रूप से कुपित था । महामारी, अकाल आदि से ग्राम-जन अस्थियों के ढेर बन चुके थे। जिसके विकराल रूप अट्टहास एवं नृशंसता से कोई भी जीवित नहीं बचता था । उसे अपनाने, शांत व अहिंसक बनाने का संकल्प महावीर ने