Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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ऐतिहासिक प्रमाणों से पोरवाल-ओसवाल
एवं श्रीमालों के एक होने की पुष्टि
आधार ग्रंथ1. 'प्राग्वाट- इतिहास' - श्री दौलतसिंह लोढा। 2. पोरवाल समाज का इतिहास - डॉ. मनोहरलाल पोरवाल । 3. सिरोही के कुल गुरुओं द्वारा संकलित वंशावलियाँ- पंडित .. हीरालाल हंसराज का जैन गौत्र संग्रह ।। 4. डॉक्टर गौरी शंकर औझा द्वारा विषय सम्बन्धित लेखादि हैं। 5. इतिहास की अमर बेल-ओसवाल-मांगीलाल भूतोड़िया
लाडनूं ।
इन्द्रगढ़ मांडल भीलवाड़ा के शिलालेख संवत् 767 एवं अन्य संस्कृत में लिखे शिलालेख जिसमें 'प्राग्वाट' शब्द प्रयोग किया गया है।
. पोरवाल इतिहास साक्षी है कि जैन धर्म दिवाकर आचार्य श्री उदयप्रभ सूरी ने श्रीमाल- नगर जिसे वर्तमान में भीनमाल कहते हैं, वहाँ संवत् 795 अर्थात् 738 ई. में 62 श्रीमाल परिवारों एवं आठ प्राग्वाट-ब्राह्मणों को जो पुरू दरवाजे के समीप निवास करते थे को बोध देकर "जैन' बनाया। उसके लगभग दो शताब्दी बाद रत्नप्रभसूरी जो उसी परम्परा के थे उन्होंने श्रीमाल नगरी से उपकेशनगर (वर्तमान में ओसियाँ) में, श्रावकों को ले जाकर उन्हें जैन बनाया जो कालान्तर में ओसवाल कहलाये। श्री अगरचन्द जी