Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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29/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार काल की सीमाओं को लांघकर बनाया गया विमलवसिह भगवान श्री आदिनाथ का मंदिर आचार्य श्री वर्धमानसूरी द्वारा प्रतिष्ठापित किया गया था। यहाँ शिल्प का प्रचूर वैभव है। इसे वीर विमल शाह द्वारा सन् 1029 में बनवाना शुरू किया था जिसकी लागत लगभग 18 करोड़ रूपये आई। जिसे 1500 कुशलतम् कारीगरों द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर का रंगमण्डप, गूढमण्डप, भमतियाँ सब अनुपम शिल्प कला से आश्चर्य चकित् करने वाली हैं। एवं आज हजार वर्ष बाद भी नया जैसा ही दिखता है। 'वीर विमल शाह' गुजरात के राजा भीमसेन प्रथम के महादण्डनायक थे। उन्होंने सिंध को तथा चन्द्रवती को फतेह किया था, वहाँ से भेट प्राप्त की। नाडोल राजा ने स्वर्ण- सिंहासन दिया। वे अद्वितीय पराक्रमी एवं धनुर्धर थे। माता अम्बिका की असीम कृपा से उन्होंने इस विश्वविख्यात मंदिर का निर्माण किया।।
वस्तुपाल तेजपाल बन्धु जिन्होंने सौराष्ट्र विजय किया उन्होंने दिलवाड़ा में ही उपरोक्त जिनालय के समीप ही सन् 1229 इस्वी में लगभग दो सौ वर्ष पश्चात् 'लूणवसिंह' नामक भगवान नेमिनाथ का अपूर्व शिल्प युक्त मंदिर का निर्माण प्रारम्भ किया। जिसका रंग-मण्डप का झूमर अर्द्ध पुष्पित कमल वाला है, संगमरमर का यह अद्भूत शिल्पकला का अकल्पनीय चरितार्थ स्वप्न है। नौचोकिये एवं सारा मंदिर अपनी बारीक शिल्प कला से अत्यन्त मन मोहक है। यदि कोई सानी हो सकता है तो वह पूर्व वर्णित मंदिर की चौकियों में से विशिष्ट उत्कीर्ण झांकियां हैं। तेजपाल के पुत्र के नाम पर लूणवसिंह नाम दिया था।
इन बन्धुओं का विवाह चन्द्रावती श्रेष्ठी धरणीशाह की पुत्रियों- ललिता एवं अनुपमा से क्रमशः हुआ था, जिन्होंने मंदिर निर्माण में सक्रिय सहयोग दिया। देराणी झेठाणी के गौखरे भी अत्यन्त प्रख्यात हैं। - इन बन्धुओं ने सोमनाथ मंदिर का पुनः निर्माण भी दस करोड़ रूपयों की लागत से करवाया। करीब तीन हजार मंदिरों के