Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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ऐतिहासिक प्रमाणों से पोरवाल ओसवाल एवं श्रीमालों के एक होने की पुष्टि/34
ओसवाल जाति के बच्छावत गौत्र के श्रेष्ठियों ने बीकानेर राज्य की बहुत सेवा की। 1488 में राव बीकाजी ने राज्य की नींव डाली और बहोथरा वत्सराज जी को अपना प्रधान बनाया। 1578 में जब भंयकर अकाल पड़ा तो कर्मचन्द ने हजारों कुटुम्बों को कई माह तक अन्न प्रदान किया। विक्रम संवत् 1604 और 1657 "
या का के बीच मेवाड़ उद्धारक उदयपुर के ओसवाल गौत्रीय सूर्य भामाशाह को कौन नहीं जानता। भामाशाह का जन्म 1604 में हुआ। राणा उदयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र प्रताप भी दुर्ग की तलहटी में रहते थे। तभी भामाशाह और प्रताप में दोस्ती हुई। वे राज्य के प्रधान बने। 1633 में हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। राजा प्रताप स्वाधीनता के लिए जाते हए भटकते रहते थे और बिलाव के रोटी ले जाने से दुखी होकर मेवाड़ छोड़ सिंध चले जाने को तैयार हुए। तब राज्य के दीवान भामाशाह ने जीवन भर का संचित द्रव्य उनके चरणों में रख दिया। कर्नल टॉड के अनुसार यह धन 2500 सैनिकों के 12 वर्ष निर्वाह के लिए प्रर्याप्त था। राणा प्रताप ने इससे खोया हुआ लगभग समस्त राज्य पुनः अपने अधिकार में ले लिया। भामाशाह खुद भी राणा के साथ लड़े। ___17 वीं शताब्दी जैसलमेर के प्रसिद्ध भंसाली गौत्र में ओसवाल श्रेणी हुई। उन्होंने 1655 में लोद्रवपुर में प्रसिद्ध पार्श्वनाथ का मंदिर बनाया। थाहरूशाह को बादशाह अकबर ने दिल्ली में सम्मानित किया। बादशाह ने रायजादा का खिताब दिया। ____17 वीं शताब्दी में महान योगीराज आनंदधन जी हुए। उनकी अध्यात्म पर चौबीसी बहुत लोकप्रिय हुई। मेड़ता के श्वेताम्बर जैन परिवार ओसवाल जाति के धनाढ्य सेठ के पुत्र थे। आनंदधन ग्रंथावली में उनके रूप में उन्होंने लिखा है कि, "ऋषभ जिनेश्वर प्रितम म्हारो और न चाहूं कंत, रिझया साहब संग, न परिहरे भोगे साधि अनंत।" . मूणोत नेणसी का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। आप कलम और तलवार दोनों के धनी थे । उनके वंशज जैन रहे एवं