Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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ऐतिहासिक प्रमाणों से पोरवाल ओसवाल एवं श्रीमालों के एक होने की पुष्टि/30
तोरण, एवं विश्वनाथ मंदिर बाराणसी का जीर्णोद्धार तथा अनके धर्मशालाएं, सरोवर, निर्मित करवाये। ये भी परम- योद्धा एवं अमात्य थे। स्वयं कई प्रदेशें के राजा भी रहे।
इतिहास प्रसिद्ध हेमू दिल्ली का शासक बना जो हेमन्तविमानि कहलाया। जिसने अकबर के साथ 1556 में सत्तर हजार घुड़ सवारों सहित युद्ध किया। डॉ. मनोहरलाल के अनुसार वह घूसर बनिया पोरवाल था जो यू.पी. क्षेत्र में अब तक पाये जाते हैं। आँख में तीर लगने से घायल होने पर इतिहास ने करवट ली; अन्यथा हेमू ने हुमायू की प्राण रक्षा की थी एवं आदिल शाह के साथ बंगाल विजय किया था , जो भारत का शासक बनता।
धरणाशाह ने स्वप्न में नलिनी-गुल्म-विमान देखा। उसी के आकार का अत्यन्त अनुपम राणकपुर का भव्य विशाल “आदिनाथ' मंदिर बनवाया। वे नांदिया ग्राम से मेवाड़ आये। कुंभलगढ़ के मंत्री बने। अनुपम दानवीर बने। माद्री पर्वत की उपत्यका में त्रेलोक्य दीपक धारण-विहार का जिनालय 99 लाख स्वर्ण मुद्राओं. की लागत से बनवाया। 1438 ई. में लगभग 1500 कारीगर, मजदूर लगाकर 50 वर्षों की अवधि में पूरा किया। जिसकी नींव 1438 ई. में रखी। 'लूणवसिंह' के पुनः 200 वर्षों के पश्चात् चालीस फुट ऊँचे 1444 संगमरमर के कारिगरी युक्त-खम्भों पर मंदिर आधारित हैं, जिन्हें सामान्यतः गिनना कठिन है ऐसी ही उनकी स्थिति है। यह विशाल वैभवशाली शिल्प का अनुपम मंदिर है जो तीन मंजिला वाला है , जिसमें कुल चौरासी देवकुलकाएँ हैं। ऐसे ही महापुरुष हुए हैं-दानवीर भामाशाह जिन्होंने मेवाड़ राज्य भर को अकाल राहत की पूर्ण सहायता देकर अमर नाम कमाया।
अन्त में इस कड़ी में जैन धर्म प्रवर्तक नीतिशास्त्र ज्ञाता , जैनदर्शनवेता एवं आगम पंड़ित श्री लोकोशाह पोरवाल का नाम चिरस्मरणीय रहेगा। वे सिरोही के अरठवाड़ा ग्राम में 1415 ई. में पैदा हुए। उनकी लेखनी अति सुन्दर थी। जैसलमेर के आगमों