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'इच्छामि णं भन्ते' का पाठ
इच्छामि णं भन्ते ! तुमेह अब्भणुष्णाएसमाणे देवसियं पडिक्कमणं ठाएमि, देवसिय नाण- दंसण-चरिताचरित -तव- अइयार - चितवणत्यं करेमि काउस्सग्गं ।
अर्थ
मूल
भन्तेतुमेहअभगुण्णाएसमाणेदेवसियं पडिक्कमणं
ठाइउं इच्छामि - देवसिय नाण- दंसणचरिताचरित-तवअइयार - चितवणत्थं
करेमि काउस्सगं
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हे पूज्य आपके द्वारा
आज्ञा मिलने पर दिवस सवधी प्रतिक्रमण को
करने की इच्छा करता हूँ
दिवस सम्वन्धी ज्ञान दर्शन देश, चारित्र और तप के
अतिचार का चिन्तन करने के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ
विवेचन - ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप, ये आत्मा के मूल स्वभाव को प्राप्त करने के साधन है । आत्मा अपने
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सायकाल के प्रतिकमण से देवसिय बोला जाता है ।
प्रात काल के
पाक्षिक
चौमामी
सत्रत्मरी
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:
( तृतीय भाग
राइय
पक्खिय
नाउम्मानिय
सवच्छ रिय
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