Book Title: Jain Pathavali Part 03
Author(s): Trilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publisher: Tilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar

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Page 12
________________ ४). ( तृतीय भाग विशेष प्रयोजन है । इस विषय मे आगे चलकर कहा जायगा। शास्त्र मे, प्रतिदिन दो वार प्रतिक्रमण करने का विधान है-सुबह और शाम को। शाम के प्रतिक्रमण मे दिन सम्बधी दोषो की और सुबह के प्रतिक्रमण मे रात्रि के समय किये हुए दोषो की क्षमा याचना की जाती है। इसके अतिरिक्त. 'पाक्षिक प्रतिक्रमण, चातुर्मासिक प्रतिकमण और 'सावत्सरिक प्रतिकमण, इस तरह प्रतिकमण के भेद किये गये है। war zun दूसरा पाठ प्रथम आवश्यक--सामायिक सूचना-जिन्हें दो घडी तक की पूरी सामायिक करनी होती है वे पहले से मामायिक लेकर ही बैठते हैं। ऐसा करना ठीक भी है। क्योकि विधिपूर्वक प्रतिक्रमण करने मे दो घडी का समय लग जाता है। अतएव सामायिक लेकर ही प्रतिक्रमण करना अधिक अच्छा है। १ प्रतिमान मुदीपूर्णिमा और बदी अमावस को किया जाता है। २ कार्तिक, फाल्गुन और आपाढ की पूर्णिमा को किया जाता है। ३ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला ५ ( सवत्सरी ) को किया जाता है।

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