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जैन पाठावली) तरह हम लोग मोक्ष में जाना चाहते हैं। मोक्ष में जाने के लिए छ आवश्यक उपयोगी है। हम से कोई भल होती है तो हमे दुख होता है और फिर ऐसी भूल न करने की इच्छा होती है । इसी लिए प्रतिक्रमण सावधानी का मुख्य मार्ग है।
(५) पांचवां आवश्यक काउस्सग्ग' है । काया (देह) का भी मोह छोडकर धर्मध्यान में स्थिर होना 'काउस्सग्ग' यी कायोत्सर्ग' कहलाता है।
(६) छठा आवश्यक ' पच्चक्खाण' है । इसे प्रत्याख्यान भी कहते है । त्याग का नियम लेना प्रत्याख्यान कहलाता है।
इन छहो आवश्यकोका आशय यह है, कि हम असत्य का त्याग करके सत्य को ग्रहण करे ।
यद्यपि ये छहो आवश्यक जुदा-जुदा हैं, फिर भी प्रतिक्रमण उनमें मुख्य है। प्रतिक्रमण में बहुत-सी जानने योग्य वस्तुएँ हमे मिलती है।
ऊपर बतलाये हुए आवश्यको को स्वतंत्र रूप से अलगअलग किया जा सकता है । सामायिक चाहे जव की जा सकती है। पच्चक्खाण भी चाहे जब किया जाता है। लेकिन एक साथ सब आवश्यक करने से सुविधा भी रहती है और अधिक आनन्द भी आता है । इसी कारण प्रतिकमण करते समय सभी आवश्यक एक साथ किए जाते है।
छह आवश्यको का क्रम ऊपर बतलाया गया है, उसमे