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, जैन पाठावली)
सामायिक लेकर बैठने के वाद, प्रतिक्रमण को प्रारभ करते समय, खडे होकर, हाथ जोडकर, विधि के साथ, तीन बार वदना करके, पहले आवश्यक की आजा मांगनी चाहिए।
वदना करते समय एक बात ध्यान में रखनी चाहिए । अगर हम साधु-मुनिराजो की मौजूदगी में बैठे हो तो उन्हे वंदना करनी चाहिए। साधु-मुनिराज न हो तो पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके श्रीसीमधर स्वामी को वन्दना करनी चाहिए।
आज्ञा लेने के बाद खडे होकर वे पाठ बोलने चाहिए, जिन्हे तुम सामायिक की विधि मे सीख चुके हो । इसे 'क्षेत्रविशुद्धि' कहते हैं । प्रतिक्रमण की आज्ञा मांगने के वाद, प्रथम आवश्यक में नीचे के पाठ बोलने चाहिए -
१-'इच्छामि ण भन्ते' का पाठ । २-'करेमि भन्ते ।' का पाठ । ३-'इच्छामि ठामि काउस्सग्ग' का पाठ । . ४-'तस्स उत्तरी' का पाठ बोलकर ,
५-काउस्सग में ९९ अतिचारो का चिन्तन करना और नवकार मन्त्र का पाठ बोलकर काउस्सग्ग पूरा करना ।
यह सामायिक आवश्यक प्रतिक्रमण के साथ ही है । इसलिए कितनेक स्थलो मे, काउस्सग्ग में चार लोगस्स के बदले निन्यानवे अतिचारो के चिन्तन का रिवाज है। ये सब अतिचार चौथे आवश्यक में बतलाए जाएंगे।
इतनी विधि के बाद पहला आवश्यक पूर्ण हो जाता है।