________________
( तृतीय भाग
(१) सामायिक के विपय मे तुम काफी जान चुके हो। मन को समभाव में रखने की क्रिया 'सामायिक' कहलाती है। हम लोगो को दिन भर बहुत-से कामो मे लगा रहना पड़ता है। फिर भी २ घडी (४८ मिनिट) सामायिक के लिये नियत कर ही लेना चाहिए, जिससे हमारा मन पवित्र बने । अच्छी भावनाएँ आवे और दूसरो पर दया तथा प्रेम उत्पन्न हो । इस प्रकार सामायिक एक उत्तम क्रिया गिनी जाती है।
(२) दुसरी क्रिया 'चउवीसथवो' कहलाती है। इसमे चौवीसो तीर्थकर भगवान् की स्तुति की जाती है। भगवान् की स्तुति करने से हमे वैसा ही बनने की इच्छा होती है।
(३) तीसरी आवश्यक क्रिया 'वंदना' है । इस आवश्य मे गुरु को वदना की जाती है । वदना अर्थात अपनी शुभ भावना और नम्रता दिखलाने की रीति ।
(४) चौथा आवश्मक 'प्रतिक्रमण' है । प्रति अर्थात् पीछा और क्रमण अर्थात् फिरना । प्रतिक्रमण का अर्थ हुआ-पीई फिरना।
जब हम दूसरे गांव को जाना चाहते है तो पहले दिश देख लेते हैं । फिर भी इस बात को सावधानी रखते हैं कि कही राह भूल न जाएं । इतने पर भी दूसरो से रास्ता पूछपूछ कर चलते है । फिर भी अगर रास्ता भूल जाएं तो उमी समय वापिस लोट कर ठीक रास्ते पर आ जाते है । इसी