Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 14
________________ गुर्वावली। जीयात्सुहस्ती ९ च गुरुद्धितीयो योऽबूबुधत्सम्प्रति भूविमुं तम् । अचीकरयो जिनसद्मरम्या पृथ्वीं त्रिखण्डाधिपतिः सुदाता ॥१७॥ सगुरुर्विधुनिधिपाणि प्रमिते २९१वीराद्गतोऽब्दके वर्गम् । सुस्थितसुप्रतिबुद्धौ कोटिककाकन्दिको शिष्यौ १० ॥१८॥ तस्याऽभूतां चोभौ कोटिकनामाऽभवच्च तद्गच्छः। कोटीशः श्रीवजं यावदभूत्सूरिमन्त्रो यत् ॥ १९॥ तत्रेन्द्रदिन्नसूरिः११श्रीदिन्न११२श्वाभवत्पदे तस्य । सिंहगिरि१३स्तस्यापि हि वज्रखामी१४च तच्छिष्यः२० या प्रज्ञा यञ्च सौभाग्यं यःप्रभावश्च या मतिः । श्रीमद्वज्रगुरावासंस्तानि नान्यत्र विष्टपे ॥२१॥ नभोगविद्याकृतसङ्घरक्षः सवज्रशाखाप्रमवस्य मूलम् । ददातु भद्रं दशपूर्व्यधीशो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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