Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
View full book text
________________
श्रीमुनिसुन्दरसूरिविरचिता
जज्ञे श्रीविबुधप्रभो गुरु २९ रदः पट्टे च विद्यानिधि - विश्वानन्दकरोगुणैरथ जयानन्द ३० स्ततः सूरिराट् ॥ नड्डूलाह्वपुरे प्रतिष्ठितवरश्रीनोमचैत्यस्ततो ऽप्यासीद्वर्षशतैरविप्रभगुरुः ३१श्रीविक्रमात्सप्त
भिः ७०० ॥ ४१ ॥ अजनिरजनिजानिर्नागरब्राह्मणानां
विपुलकुलपयोधौ श्रीयशोदेवसूरिः ३२ ।
प्रवरचरणचारी भारतीकण्ठनिष्का
भरणविरुदधारी शासनद्योतकारी ॥ ४२ ॥
प्रद्युम्नसूरिश्च ततो बभूव प्रद्युम्नदर्पानलवारिवाहः ।
प्रणीतस द्युक्त्युपधानवाच्य
ग्रन्थश्च तस्मादपि मानदेवः ॥ ४३ ॥ ( केचिदिदं सूरिद्वयमिह न वदन्ति । )
ततः प्रसिद्धोऽजनि चित्रकूटे सहेमसिद्धिर्विमलेन्दुसूरिः ३३ ।
अपूजयद्यं विषमेऽपि वादे
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
•
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122