Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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गुर्वावली। श्रीवर्धमानादिह षोडशोऽभूत्
श्रीचन्द्रसूरिः खलु गच्छनेता । एकोनविंशश्च ततोऽपि जज्ञे सूरीश्वरोयं किल सर्वदेवः ३५ ॥
इति पाठः ३ । अत्रैव श्रीप्रद्युम्नसूरिसदुपधानग्रंथकर्तृ श्रीमानदेवसरिमणने च
श्रीवईमानादिह षोडशोऽभूत् श्रीचन्द्रसूरिः १६ किल गच्छनेता । बभूव तस्मादनुचैकविंशः सूरीश्वरोऽयं किल सर्वदेवः ३७ ॥ ५९ ॥
__ इति वा पाठः ४॥ अयं चात्र गण्यते, विशेषं तु विशेषज्ञा विदन्ति । गच्छश्च तस्य बहुसूरिमुनीश्वरायै
राढ्यव्रतो भुवि दधौ क्रमतः प्रसिद्धिम्। विज्ञैर्वृहद्गण इति स्तुतिमाप्यमानः
सर्वैर्वृहत्तरतया चरितैर्गुणैश्च ॥६॥
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