Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 48
________________ गुर्वावली । युतत्रयस्थाथ मुदा व्ययेन । श्रीधर्मघोषे वगुरौ समेते ऽन्यदा प्रवेशोत्सवमाततान ॥ ८१॥ प्रसेदुषाऽसौ गुरुणाऽर्पितक्रमः __ क्रमाऽवबुद्धद्रविणव्ययास्पदः । मचीकरच्चैत्यचतुष्टयाधिका शीतिं स्फुरच्छारदवारिदभ्रमाम् ॥ ८२ ॥ अनुत्तरैस्तैः किल चिन्तनातिगै रुदारधीरेश्चरितैरसस्मरत् । चिरायतीतं हरिषणचकिणं ससम्प्रति चापि कुमारभूपतिम ३॥ मौक्तिकश्रीसमायुक्तजिननायकमण्डिताः। हारा इव विहारास्ते भान्ति भूभामिनी हदि८॥ कोटाकोटिरिति प्रसिद्धमहिमा शान्तेश्च शत्रुञ्जये श्रीपृथ्वीधरसंज्ञया सुरगिरौ श्रीमण्डपाद्रौ लथा । प्रासादा बहवः परेऽपि नगरप्रामादिषु प्रोन्नता भ्राजन्ते भुवि तस्य मुक्तिवलभीनिःश्रेणिदण्डा इवा८५। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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