Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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गुर्वावली। नृपेभ्यमन्त्र्याद्यखिलप्रजार्चितः॥७॥ निरीक्ष्य दूरादपि यानरियतो मुदाशु दण्डव्रतकृत् सहानुगैः। अवन्दत व्यञ्जितभक्तिडम्बरः प्रजासमक्षं बहुधास्तुवनगुरून् ॥८॥ सङ्घाधिपनरियायैः
पृष्टो नमनादिहेतुमाख्यच । गुरुरादिदेश दिव्य___ ज्ञानार्डः कणयरीपामाम् ॥ ९॥ पद्माख्यदण्डपरिकर
चिह्नरुपलक्ष्यसूरयो वन्द्याः । भवता युगप्रधानाः
शिवदा इत्यादि तयनमम् ॥१॥ धाराभिधश्रावकपुङ्गवेन
पक्षोपवासैर्वशितःसुपर्वा । प्रपृच्छय सीमन्धरसार्वमाख्यत्
त्रिभिर्भवैर्मुक्तिपदं हि येषाम् ॥ ११ ॥
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