Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ श्रीमुनिसुन्दरसूरिविरचिता ___ अत्र श्रीपृथ्वीधरसाधुकारितमासादस्थानसंख्यामा नायकजिननामादि वाच्यम्। पूज्यगुरुश्रीसोमतिलकररिपादै. कृतं स्तोत्रमवतार्य पठनीयम् ॥ । तच्चेदम् । श्रीपृथ्वीधरसाधुना सुविधिना दीनादिषद्दानिना भक्तश्रीजयसिंहभूमिपतिना खौचित्यसत्यापिना । अर्हद्भक्तिपुषा गुरुक्रमजुषा मिथ्यामनीषामुषा सच्छीलादिपवित्रितात्मजनुषा प्रायःप्रणश्यद्रुषा।८ नैकाः पौषधशालिकाः सुविपुला निर्मापयित्रा सता मन्त्रस्तोत्रविदीर्णलिङ्गविवृतश्रीपार्श्वपूजायुजा। विद्युन्मालिसुपर्वनिर्मितलसद्देवाधिदेवाह्वय ख्यातज्ञाततनूरुहप्रतिकृतिस्फूर्जत्सपर्यासृजा ॥८॥ त्रिकाले जिनराजपूजनविधि नित्यं द्विरावश्यकं साधौ धार्मिकमात्रकेऽपि महती भक्तिं विरक्तिं भवे। तन्वानेन सुपर्वपौषधवता साधर्मिकाणां सदा वैयावृत्यविधायिना विदधता वात्सल्यमुच्चैर्मुदा॥८॥ श्रीमत्संप्रतिपार्थिवस्य चरितं श्रीमत्कुमारक्षमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122