Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
View full book text
________________
श्रीमुनिसुन्दरसूरिविरचिता प्यहो सयोगीह विभीषिका इमाः ॥३९॥
तथाहि । स्फारैः स्फूत्कारवारै
भरितसुरपथा भूमिपीठे समन्ताहीष्मा भोगीन्द्रभाराः
फणमणिकिरणैर्योतिताशाः प्रसनुः। शालान्तः पुस्तकाद्यो
पकरणवलकस्तम्भमुख्याऽखिलार्थान् खादन्तो वज्रतुण्डा
भयदपृथुवपुर्मूषकाश्चोपरिष्टात् ॥ ४० ॥ फेत्कारान् स्फोरयन्तो
बहिरथ वसतेश्वण्डफेरण्डसङ्घा बल्गन्मार्जारवाराः
पृथुरदवदनामण्डलाचाप्यसङ्ख्या। दृष्ट्वा तान् भीभरेणो
तरलितनयनाः कम्प्रगात्रा न नष्टुं स्थातुं वा शिक्नुवन्तो
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122