Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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गुर्वावली। सौवीरपायीति तदेकवारि
पानाद्विधिज्ञो विरुदं बभार। जिनागमाम्भोनिधिधौतबुधि__ यः शुद्धचारित्रिषु लब्धरेखः ॥६६॥ संविनमौलिर्विकृतीः समस्ता___ स्तत्याज देहेऽप्यममः सदा यः। विद्वहिनेयालिवृतप्रभावः
प्रभागुणौघैः किल गौतमाभः ॥ ६७ ॥ हरिभद्रसूरिरचिताः श्रीमदनेकान्तजयपताकाद्याः। ग्रन्थनगा विबुधानामप्यधुना दुर्गमा येऽत्र ॥ ६८ ॥ सत्पञ्जिकादिपद्या विरचनया भगवता कृता येन। मन्दधियामपि सुगमास्ते सर्वे विश्वहितबुद्ध्या ॥६९॥ षट्तर्कीपरितर्ककेलिरसिको यः शैववादीश्वर प्रज्ञाऽधःकृतवाक्पतिं नृपसभे जित्वोगहेत्वाशुगैः । प्रत्यक्षं विदुषां चकार विजयश्रीभाजनं शासनं वन्द्योऽसौ मुनिचन्द्रसूरिसुगुरुः केषां न मेधाजुषाम्।७.
आनन्दसूरिप्रमुखा मुनाश्वराः
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