Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 30
________________ गुर्वावली। चन्द्रगच्छेऽभवत्सूरिस्तस्माच्चैत्रगणोऽभवत् ॥ ८४ ॥ कालाढुवनचन्द्राह्वस्तत्र जज्ञे गुरुर्गुणी । शुद्धसंयमधीस्तस्मादेवभद्रश्च वाचकः ॥ ८५ ॥ सम्वेगरङ्गाम्बुधिधौतबुद्धिं ___जिनागमात्क्लप्तचरित्रशुद्धिम् । विधीयमानार्हतधर्मवृद्धि शुद्धैर्गुणैः प्राप्तजगत्प्रसिद्धिम् ॥ ८६ ॥ अधीतिनं सारजिनागमानां सूत्रेषु चार्थेषु च वेदिनं च । आम्नातिनं साधुविशुद्धसामा चार्या प्रवृत्तं च यथावदस्याम् ॥ ७ ॥ श्रीदेवभद्राभिधवाचकेन्द्र तं श्रीजगच्चन्द्रगुरुः प्रबुद्धः । अथोपसम्पद्विधिना प्रपद्य स तद्वितीयो धुरमस्य दः ॥ ८८ ॥ विशेषकम् । समुद्धृतः सोथ वृषोत्तमाम्यां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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