Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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गुर्वावली। सारस्वतं किमपि यन्त्रमगम्यमन्यैः । तस्याः प्रसादवशतो नृपतेः सभाया
माघाटनामनि पुरे चतुरङ्गवादे ॥ ५॥ द्वात्रिंशतं विकटदिक्पटवादिराजान् ___ द्राग् सार्ववैद्यविदुरानजयत् कमात्सः । भग्नो न हीर इव कैश्चिदिति प्रसिद्ध ___ भूपात्तदाऽऽप विरुदं किल हीरलेति ॥६॥
॥ युग्मम् ॥ तेन स्वस्य पदे न्यस्तौ देवेन्द्रविजयेन्द्रको । सूरीन्द्रौ शासने भातौ जबूद्वीपे रवी इव ॥ ७ ॥ शिष्येऽन्यदा सार्वधुरीणवृत्तौ ____ देवेन्द्रसूरौ सगणस्यभारम् ॥ विन्यस्य विश्वस्य हराविवेन्द्रः
स्वःशर्म भेजेऽथ शिवाय वोऽस्तु ॥ ८ अथो जगञ्चन्द्रमुनीन्द्रपट्टभृत् श्रीमान् स देवेन्द्रगुरुः ४६शमाम्बुधिः । नाम्ना गुणैरप्यभवद्गुरोःसमो
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