Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 29
________________ श्रीमुनिसुन्दरसूरिविरचिता विनेयवृत्तिर्मणिरत्नसद्गुरोः। गवां विलासैरमृतं निदर्शयन् श्रीमान् जगच्चन्द्रगणेन्द्रचन्द्रमाः ॥८॥ स सौम्यमूर्तिः सकलागमानां सूत्रेष्वधीती परिनिश्चितार्थः । संविनमौलिर्दधतेस्म सूरे र्गुणान् समग्रान् गणिसम्पदश्च ॥८१॥ अथ कलिघनदुर्दिनावतारे प्रसरदसज्जडसंचये समन्तात् । प्रतिहतजिनराजभानुतेजो महिमभरेऽनवबोध्य मुक्तिमार्गः ॥ ८२॥ निजगणसरणौ प्रसादपङ्के चरणरथं प्रविलोक्य गाढममम् । गुरुरयमसमस्तमुहिधीर्घवृषभ इवाऽपरमीक्षते सहायम् ॥ ८३ ॥ युग्मम् । अथ चैत्रपुरे वीरप्रतिष्ठाकुडनेश्वरः । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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