Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
View full book text
________________
श्रीमुनिसुन्दरमरिविरचिता श्लाघ्या न केषामिह तस्य बन्धवः। ये दीक्षिताः श्रीमुनिचन्द्रसूरिणा
प्रतिष्ठिताः सूरिपदे च शिक्षिताः॥७१ ॥ अष्टहयेशमिते ११७८ ऽब्दे
विक्रमकालादिवंगतो भगवान्। श्रीमुनिचन्द्रमुनीन्द्रो
ददातु भद्राणि सङ्घाय ॥ ७२ ॥ तस्मादभूदजितदेवगुरु ४२ गरीयान् प्राच्यस्तपःश्रुतनिधिर्जलधिर्गुणानाम् ।
श्रीदेवसूरिरपरश्च जगत् प्रसिद्धो वादीश्वरोऽस्तगुणचन्द्रमदोऽपि बाल्ये॥७३॥ येनार्दितश्चतुरशीतिसुवादिलीला
लब्धोल्लसज्जयरमामदकेलिशाली । वादाहवे कुमुदचन्द्रदिगम्बरेन्द्रः
श्रीसिद्धभूमिपतिसंसदि पत्तनेऽस्मिन्॥७॥ स्याहादरत्नाकरतर्कवेधा
मुदे स केषां नहि देवसूरिः।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122