Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 23
________________ श्रीमुनिमुन्दरसूरिविरचिता नाभेयचैत्येऽष्टमतीर्थराज बिम्बप्रतिष्ठां विधिवत्सदWः ॥ ५७ ॥ चन्द्रावतीभूपतिनेत्रकल्पं श्रीकुङ्कुणं मन्त्रिणमुच्चऋद्धिम् । निर्मापितोत्तुङ्गविशालचैत्यं योऽदीक्षयत् शुद्धगिरा प्रबोध्य ॥१८॥ एकोनविंशः प्रभुवईमानात् श्रीचन्द्रसूरिः १९र्गणनायकोऽभूत् । बभूव तस्मादनु चैकविंशः सूरीश्वरोऽयं किल सर्वदेवः४०॥५९॥ श्रीप्रद्युम्नसूरि सदुपधानग्रन्थकारकश्रीमानदेवसूरी केचित्र वदन्ति तन्मते एकोनविंशः प्रभु एकोनविंशश्च ततोऽपि जज्ञे । सूरीश्वरोऽयं किल सर्वदेवः ३८ इति पाठः। श्रीसम्भूतविजयसूरि श्रीभद्रबाहुसूरि १ श्रीआर्यमहागिरिसूरि श्रीमुहस्तिसूरि २ श्रीमुस्थितसूरि श्रीमुप्रतिबदसरि ३ रूपयुगलत्रये एकैकस्यैव सन्तानप्रवर्चकपट्टभृतः मरेर्गणने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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