Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ श्रीमुनिसुन्दरमरिविरचिता यदुच्चशृङ्गेषु मृगैश्वरद्धि मिलन्विधोरङ्कमृगः प्रयातः। हयैर्हयाश्चार्करथस्य युक्ताः स्वजातिजातिथ्यसुखं लभन्ते ॥ १९ ॥ यदुच्चमौलिस्थितकाननेषु तमीषु सर्वासु विभान्ति वृक्षाः। शाखागणान्तर्गततारकौधा इवाऽखिलगतपुष्पगुच्छाः ॥ ५॥ विभाति नानाविधनन्दनाश्रितो यो भद्रशालावलिभिस्तथाचितः। परिस्फुरनिष्पमपाण्डुकम्बली बिभ्रत्सुमरोरतिशायिनीं श्रियम् ॥५१॥ मन्मौलिमौलिः प्रमुरादिमोऽर्हता चकास्ति नागेन्द्रमुखैः प्रतिष्ठितः। उच्चैः पदं यान्ति निनसयाऽपि मे पराङ्मुखायाध इतीव दर्शयन् ॥ ५२ ॥ चतुर्नवत्याऽम्यधिकैः शरच्छतैः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122