Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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गुर्वावली । चमत्कृतं भूपमबोधयद्यः ॥ ३५ ॥ भयहरतः फणिराजं यश्वाकार्षीद्वशम्वदं भगवान्। भक्तिभरेत्यादिनमस्कारस्तवदृब्धबहुसिद्धिः ॥३६ ।। जज्ञे चैत्ये प्रतिष्ठाकृन्नेमे गपुरे नृपात् । त्रिभिर्वर्षशतैः३०० किञ्चिदधिकैर्वीरसूरिराट् २२ ॥३७॥ क्रमाबभूवुर्जयदेव २३ देवा
नन्दौ २४ गुरू विक्रमसूरिराट् २५ च । नरादिसिंहश्च गुरुर्नरादिसिंहे
पुरे बोधितहिंस्रयक्षः ॥ ३८ ॥ खोमाणभूभृत्कुलजस्ततोऽभूत
समुद्रसूरिः २७ स्ववशं गुरुर्यः । चकार नागहूदपार्श्वतीर्थ
विद्याम्बुधिर्दिग्वसनान् विजित्य॥३९॥ अभूद् गुरुः श्रीहरिभद्रमित्रं
श्रीमानदेवः पुनरेव सूरिः २८ । यो मान्द्यतो विस्मृतसूरिमन्त्रं
लेभेऽम्बिकास्यात्तपसोज्जयन्ते ॥ ४० ॥
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