Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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गुर्वावली। एवं क्रमेण गुरुवः प्रोक्ताः क्वचन क्रमान्तरेणापि । भव्यानां भवभीति हरन्तु तन्वन्तु च श्रेयः ॥२७॥
अथो गुरुश्चन्द्रकुलेन्दुदेव__ कुलादिवासोदितनिर्ममत्वः । सामन्तभद्रः१७ श्रुतदिष्टशुद्ध
तपस्क्रियः पूर्वगतश्रुतोऽभूत् ॥ २८ ॥ वृद्धस्ततोऽभूत्किल देवसूरिः १८
शरच्छते विक्रमतः सपादे १२५ । कोरण्टके यो विधिना प्रतिष्ठां
शङ्कोळधान्नाहडमन्त्रिचैत्ये ॥ २९ ॥ प्रद्योतनः सूरि१९ रभूत्पदेऽस्य
ततोऽपि चासीद् गुरुमानदेवः २० । यस्यांसयोर्गी:कमले समीक्ष्य
साक्षात्प्रतिष्ठासमये पदस्य ॥ ३०॥ भ्रंशोऽस्य भावीति विचारणातो
विखिन्नचित्तं गुरुमाकलय्य । तत्याज यो भक्तकुलाप्तभिक्षा
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