Book Title: Gurvavali
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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श्रीमुनिमुन्दरसूरिविरचिता बाल्येऽपि जातिस्मृतिमान् सुराय॑मा२२॥ स्वर्वेददन्तीषुमिते ५८४ सवर्षे
यातो जिनात्प्रेष्य निजं विनेयम् । सोपारके श्रीमति वज्रसेनं
तदा चतुर्बन्धुविबोधहेतोः ॥ २३ ॥ श्रीवज्रसेना१५च्च ततो बभूवुः
कुलानि चत्वारि सुविस्तृतानि । नागेन्द्रचान्द्रे अथ नैर्वृतं च
वैद्याधरं वादिजसूरिनाम्ना ॥ २४ ॥ विचित्रशाखा कुलगच्छमूलं
नैके बभूवुर्गुरवश्व तेषु । प्रणम्य तांश्चान्द्रकुलेऽथ सुरीन्
स्तवीमि कांश्चिक्रमतो गणेन्द्रान् ॥ २५ ॥ नख वर्षेऽथ६२.जिनादिवं स
श्रीवज्रसेनोऽधिगतः श्रियेऽस्तु । श्रीचन्द्रसरि १६ श्व पदे तदीयेऽ
भवद् गुरुचन्द्रकुलस्य मूलम् ॥२६॥
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