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(१२) २. धम्मपरिक्खा के रचयिता हरिषेण ..
धम्मपरिक्खा के रचयिता हरिषेण मेवाण में स्थित चित्रकूट (चित्तौड़) के निवासी थे । वे श्री उजौर (ओजपुर) से उद्भुत धक्कड वंश के थे । भविस. यत्तकहा के रचयिता यशस्वी कवि धनपाल ने भी इसी वंश को सुशोभित किया था। इसी कुल में हरि नामक कोई प्रतिष्ठित कलाकार भी थे । उनके पुत्र और हरिषेण के पिता का नाम गोवर्धन और माता का नाम गुणवती था। पुत्र हरिषेण गुणगणनिधि और कुल गगन दिवाकर था । उन्होंने किसी कारणवश, कदाचित् व्यापारनिमित्त (णियकज्ज) चित्तौड़ छोड़कर अचलपुर पहुंच गये । वहीं उन्होंने छन्द, अलंकार का अध्ययन किया और धम्मपरिक्खा की रचना की। कवि ने स्वयं को, 'विवह-कइ-विस्सुइ' कहा है । धम्मपरिक्खा की प्रशस्ति में उन्होंने लिखा है
इह मेवाड-देसिजण संकुलि सिरिउजउर-णिग्यय-धक्कड कुलि । पाव-करिद-कुंभदारण-हरि जाउ कलाहिं कुसलु णामें हरि । तासु पुत्त पर-णारि-सहोयरु गुण-गण-णिहि कुल-गयण-दिवायरु । गोवडढणु णामें उप्पण्णउ जो सम्मत्तरयण-संपुण्णउ । तहो गोवड्ढणासु पिय गुणवइ जा जिणवर-पय णिच्च वि पणवइ । ताए जणिउ हरिषेण--णाम सुउ जो संजाउ विवह-क इ-विस्सुउ । सिरि चित्तउउ चइवि अचल उरहो गउ णिय-कज्जे जिणहर - पउरहो। तहिं छन्दालंकार पसाहिय धम्मपरिक्ख एह तें साहिय । जे मज्झत्थ मणुय आयणहिं ते मिच्छत्त-भाउ अवगणहि । तें सम्मत्त जेण मलु खिज्जइ केवलणाणु ताण उप्पज्जइ । घत्ता- तहो पुणु केवलणाणहो णेयपमाणहो जीव-पएसहिं सुहडिउ । बाहा-रहिउ अणंतउ अइसयवंत उ मोक्ख-सुक्ख-फलु पयडियउ ।।26।।
धम्मपरिक्खा की रचना वि. सं. 1044 में हुई जैसा कि निम्न कडवक (क्र. 11.27) की पंक्तियों से सिद्ध होता है।
विक्कम-णिव-परिवत्तिए कालए ववगयए-वरिस-सहस-चउतालए। इउ उपप्ण्णु भविय-जण-सुहयरु उंयरहिय-धम्मासय-सायरु ।
बुध हरिषेण के गुरु का नाम सिद्धसेन रहा होगा जैसा कि उन्होंने धम्मपरिक्खा की ग्यारहवीं सन्धि के कडवक 25 के अन्त में लिखा है
सिद्धसेण-पय वंदहिं दुक्किउ णिहि जिण हरिषेण णवंता। तहि थिय ते खग-सहयर कय धम्मायर विविह-सुहई पावंता ॥ 11.25 ॥
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