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3) शब्दों की पुनरुक्ति द्वारा
शब्दों में प्रत्ययों के योग से संज्ञा, विशेषण, क्रियाविशेषण, नाम, धातुएं आदि शब्द रूप निर्मित होते हैं और उनसे विविध भावों की अभिव्यक्ति होती है। इन्हें हम तद्धित प्रत्यय कह सकते हैं।
1) पूर्वप्रत्यय- शब्दों के पूर्व कुछ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाये गये हैं। जैसे- अ + काल = अकाल, अ + धम्म = अधम्म, अप् + जस् = अपजस, दु + जन = दुज्जन, अ + भय = अभय, स + फल = सफल आदि। ___2) परप्रत्यय- ये प्रत्यय मूल प्रातिपादिक, व्युत्पन्न प्रातिपदिक अथवा धातुओं के बाद जोड़े जाते हैं। इनसे संज्ञा, विशेषण, क्रिया आदि शब्दों का निर्माणं होता है। जैसे- अल्ल : एककल्ल, नबल्ल । इल्ल : पुरिल्ल । इल्लु : केसरिल्ल । आवण : भयावण । ऊण : पच्छिऊण, हसिऊण । इसी तरह से थक्कू, मोल्लु, गल्लु. पेच्छिवि, हसेविणु, हणेवि, मुणेवि, पमोत्तूण, णिसुगविणु, पमोत्तूण, बोल्लाविय, पोल्लिउ आदि शब्द भी परप्रत्यय लगाकर बनाये गये हैं। समास - रचना की दृष्टि से शब्द दो प्रकार के होते हैं- सरल शब्द और जटिल शब्द । जो रूप मुक्त है वह सरल शब्द हैं। जैसे गरु, भाइ आदि। जटिल शब्द के दो भेद हैं-1) मिश्र' शब्द, 2) समस्त शब्द या सामासिक शब्दः । पूर्व या परप्रत्यय (बद्धरूप) मुक्त रूप (मूल शब्द) में जोड़कर मिश्र शब्द बनाये जाते हैं। समस्त शब्द में एक से अधिक शब्द रहते हैं। वह प्रायः दो धातुओं, संज्ञाओं, सर्वनामों, विशेषणों, अव्ययों तथा दो विभिन्न पदों के योग से निमित हैं। पारम्परिक दृष्टि से इसे हम मुख्यतः चार प्रकारों में विभाजित कर सकते हैंअव्ययी भाव, तत्पुरुष, बहुव्रीहि और द्वन्द । अव्ययीभाव में पहले पद के अर्थ की तत्पुरुष में दूसरे पद के अर्थ की, बहुब्रीहि में अन्य पद के अर्थ की तथा द्वन्द में सभी पदों के अर्थों की प्रधानता होती है । धम्मपरिक्खा में समास के इन चारों भेदों-प्रभेदों को देखा जा सकता है । यद्यपि वहां समस्त शब्दों का बहुत अधिक प्राबल्य नहीं है फिर भी यत्र-तत्र समासान्त पदावली मिल ही जाती है। . रूप साधक प्रणाली
: : .. __रूप प्रक्रिया के अन्तर्गत संज्ञा के लिंग, वचन और कारण पर विचार किया जाता है। संज्ञा को प्रातिपदिक कहा जाता है और प्रतिपदिक में वचन लिंग, कारक आदि सूचक प्रत्यय समाविष्ट होते हैं। ये प्रत्यय दो प्रकार के हैंव्युत्पादक प्रत्ययं और विभक्ति प्रत्यय । व्युत्पादक 'प्रत्यय प्रातिपदिक के पूर्व अथवा परस्थिति में लगते हैं जबकि विभक्ति प्रत्यय शब्द की अंतिम स्थिति में ही लगते हैं।
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