Book Title: Dhammaparikkha
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Research Institute of Indology Nagpur

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Page 262
________________ १२८ घत्ता- इह मलिय कुसंगहि दहविह भंगहि विमलु धम्मु उप्पज्जइ । सुरणरफणिपुज्जहो हिंसविवज्जहो तहो फलु विवहु कहिज्जइ।।२०॥ (21) जासु जणणि तणु सुद्धि हि कारणि इंदायए आइए अत्थरयणि। वारहु पक्ख जाम दहुरयणइ सुरवरिसहि उज्जोइय गयणइ । गम्भे थिय णवमास णिरंतर रयणविट्टिकच्चुरिय वसुंधर । किज्जइ पुणु नि पुणु वि गिव्वाह पियरह पुज्जिज्जइ गयमाणहि । जे जम्मणि सुरसिहरे चडेविणु खीरसमुदखीर आणेविणु। 5 कयणरयणमकलस सहासहि हाविज्जहि सुरवहि संतोसहि । पुणु णिक्खमणे अमरसंघायहि सिवियारवंध जाण अणुरायहि । एक्कमिक्क विरइय समहहि थे णिज्जहि कय जय जय सद्दहि । सेवलणाणुभवि सुर विहियए समवसरणि वहु सोहा सहियए । सुरणरविसहरसहहिणिविट्ठा जे सयलु वि भासंति गरिट्ठा। 10 घत्ता-पुणरवि णिव्वाणए सुहसंताणए अग्गिकुमारमउड सिहिहि । अंगइ सक्कारहि सुरतरुसारहि जा णवेवि विविहहि विहिहि ।।२१।। (22) इय जसु पंच महाकल्लाणहि चउतीसाइसयहो सव्वहियहो तिहुयणसिरि दासि जहु दीसइ ते जिण तिहुयणणयण पियारा . जा मणिरयणु विसेसइ (सोहइ) छाइज्जइ ण हु अमरविमाणहि । अट्ठ पाडिहेरुण्णय सहियहो। तेहि समाणु कवणु किर सीसइ । धम्मफलेण हवंति भडारा। कागणि किउ रविससि तमु णासइ । (20) 1.b खमाए for पमाए, 2.a दुहमदवेणे, फुडु for तह, 3.b तह for पुणु, 4.b हिंय०, b संचएण, 6.a पणिदय०, 10.b हयमयब्भवेण, Il.b गलिय for मलिय, b दहधम्मंगहि विमलधंम्मु उज्जइं, 12.b विविह कहिज्जइं। (21) 1.b जाएणि for जणणि, 2. जेम, b रयणई, b गयणई, 3.b गम्भत्थि यहो, 4.a किंज्जइ, b विज्जइं, a पुण वि पुण वि, b पियरई पुजिज्जहि, 5.a 0 जम्मण, a सुणेविणु for चडेविणु, 6.a कणयरयणु, b सहासहि हाविज्जइं खुरवई, 7.a पुण, b णिक्ख वणि, 8.a एक्कुमेक्क, b inter. कय and जय जय, 9.a केवलु, a वहु सोभा, 10.a सयल, l.a मिव्वाणए, 12.b जाणवे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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